Tuesday, June 19, 2012

आज फिर लिखने को कुछ कहा इस दिल ने

आज फिर लिखने को कुछ कहा इस दिल ने ।
वो शब्द जो दब गए थे रोज़ मरहा की भाग दौड़ में, 
उन्हें उभारने को कहा इस दिल ने ।

आज फिर एहसास हुआ की हर कोई यहाँ अकेला है।
दिमाग भागता है दुनिया को कुछ और दिखाने को,
और ये दिल ढूँढता है अपना हमसफ़र ।

पर ना तो दुनिया सरहाती है इस दिमाग को
और ना ही कोई हमसफ़र अपना हो पाता है ।
कई एहसासों को अपने में समेटकर, हम जी रहे हैं इस ज़िन्दगी को
जाने कब रूह को मिलेगी आज़ादी ।


जाने आज क्या कुछ उभर आया इन शब्दों में,
आज फिर लिखने को कुछ कहा इस दिल ने ।

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